क्या बिहार में फिर कुछ राजनीतिक उलटफेर होने जा रहा है। चर्चा तो यही है कि फिर नीतीश कुमार एक बार पलटी मारने जा रहे हैं। क्या जदयू दो फांक होने के कगार पर है। क्या है माजरा आइए हम समझाने की कोशिश करते हैं। नीतीश कुमार इंडिया गठबंधन के सूत्रधार हैं ये तो सभी जानते हैं। इंडिया गठबंधन की अबतक चार पटना बेंगलुरु मुम्बई और दिल्ली में बैठकें हो चुकी है। लेकिन इन्हें कोई खास इन बैठकों में अहमियत दी गई न तो संयोजक बनाया गया और न संभावित प्रधानमंत्री के रुप में प्रोजेक्ट किया गया। नाम अगर आया भी तो कांग्रेस अध्यक्ष खरगे का जिसे उन्होंने अस्वीकार कर दिया। नीतीश और उनके चाहने वाले को उम्मीद थी कि बैठक में नीतीश कुमार को अगुआई या नेतृत्व करने का जिम्मेदारी जरूर मिलेगी। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ न आगे कोई संभावना दिख रही है। इधर भाजपा को तीन राज्यों में प्रचंड जीत मिली तो कांग्रेस थोड़ा कमजोर हुई । यही वजह था कि नीतीश को और उम्मीद जगी।
लालू तेजस्वी का स्टैंड क्लीयर है ये दोनों पिता पुत्र भी स्थिति को देखते हुए नीतीश का इंडिया गठबंधन में बढ़-चढ़कर नहीं कर रहे हैं। लालू तेजस्वी और राष्ट्रीय जनता दल के अधिकांश नेता नीतीश पर हावी हैं। अब नीतीश असहज महसूस करने लगे हैं। इन्होंने आनन फानन में अपने सांसद और विधायकों की बैठक बुला ली और इनका दिल टटोलने लगे। नीतीश का मन बोलते देख राष्ट्रीय अध्यक्ष लल्लन सिंह और तकरीबन एक दर्जन विधायक नीतीश के डोलते मन का विरोध कर रहे हैं। राजनीतिक गलियारे में जो चर्चा है इसमें ललन सिंह किसी भी हाल में भाजपा से गठबंधन करने के पक्ष में नहीं है। लालू तेजस्वी से ललन सिंह की नजदीकियां बढ़ती जा रही है। हालांकि नीतीश के सिपहसलाकार ललन सिंह को मनाने का पूरजोर कोशिश कर रहे हैं। लेकिन उन्होंने तय कर लिया है और वे राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से किसी समय इस्तीफा दे सकते हैं। नीतीश अगर भाजपा में जायेंगे तो जदयू टुटेगा और तेजस्वी बिहार में कुछ दिनों के लिए हीं सही बिहार का मुख्यमंत्री बन जायेंगे। फिर क्या होगा राष्ट्रपति शासन लगेगा या लोकसभा चुनाव के साथ बिहार विधानसभा का चुनाव कराया जायेगा कहना मुश्किल है कुछ भी हो सकता है बिहार में अगले कुछ दिनों में।
अब देखिए लालू प्रसाद और तेजस्वी का वोट बैंक यादव और मुस्लिम है तो नीतीश का वोट बैंक अति पिछड़ा समाज है। भाजपा अति पिछड़ा समाज को यह समझाने में सफल दिख रही है कि बिहार में फिर जंगल राज आ गया है और नीतीश बिहार में फिर लालू तेजस्वी के गोद में बैठकर जगल राज लाना चाहते हैं फिर यादवों का तांडव शुरू हो गया है और हर समाज प्रताड़ित हो रहे हैं आगे और होंगे। भाजपा बड़े हीं चतुराई से अति पिछड़ा समाज और अन्य वर्गों को ये समझाने में सफल दिखती है। नतीजा यह है कि नीतीश का कोर वोट जदयू से छिटकने लगा है और ये भाजपा की ओर जाने का मन लालू तेजस्वी के भय से जाने का मन बना रहे हैं। फिर नीतीश क्या करेंगे। इसे नीतीश कुमार भली-भांति समझ चुके हैं। इसलिए सांसदों के दबाव में और अपने कोर वोट को देखते हुए पाला बदलने का एक बार फिर मन बना रहे हैं। अगर नीतीश कुमार ऐसा करते हैं तो भाजपा के दोनों हाथ में लड्डू होगा। भाजपा बिहार में फिर लोकसभा चुनाव में स्वीप करेगी । लेकिन नीतीश मुख्यमंत्री रह यह पायेंगे और न आगे मुख्यमंत्री बन पायेंगे। तेजस्वी जरूर कुछ दिनों के लिए मुख्यमंत्री बन सकते हैं लेकिन नीतीश को अब भाजपा बिहार में मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार नहीं करेगी यह तय है।
भाजपा के राज्य स्तरीय नेता किसी भी हाल में स्वीकार करने को तैयार नहीं है। केन्द्रीय नेतृत्व जरुर चाहेगी कि नीतीश गठबंधन का एक बार और साथी बने लेकिन ये भी अब मुख्यमंत्री नीतीश को नहीं भाजपा के किसी नेता को बनायेगी। तेजस्वी अगर जेल गये तो उनकी पत्नी अपने छोटे बच्चे को लेकर राजनीति में कुल पड़ेगी और सहानुभूति बटोरने का प्रयास करेगी । देखिए अगले कुछ दिनों में बिहार की राजनीति क्या करबट लेती है और नीतीश एक बार फिर क्या गुल खिलाते हैं। फिलहाल कयासों का बाजार बिहार में काफी गर्म है।