मधुबनी | झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र में चुनावी शोरगुल शुरू हो चुकी है। भाजपा जहां दमदार प्रत्याशी खोज रही है वहीं इंडिया गठबंधन से इतने कैंडीडेट टिकट के दौर में हैं कि गठबंधन खासकर जदयू असमंजस की स्थिति में है। झंझारपुर इंडिया गठबंधन का बिहार में सबसे सेफ सीट माना जाता है, कारण एक हीं है कि यहां अति पिछड़ा वोट सर्वाधिक है। झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र में अति पिछड़ा समाज अभी तक जदयू का बोट बैंक रहा है। भाजपा यहां से सिर्फ एक बार चुनाव जीत पायी है चुकी यह सीट हमेशा जदयू के खाते में जाता रहा और पिछले कई चुनावों में यहां जदयू प्रत्याशी जीतते रहे हैं।
झंझारपुर लोकसभा 1972 में अस्तित्व आया और यहां कांग्रेस के साथ अनेक समाजवादी नेता सांसद बनते रहे हैं। जेपी आंदोलन से निकले फुलपरास निवासी देवेंद्र प्रसाद यादव सबसे अधिक 5 बार सांसद बने और केन्द्र की देवगौड़ा सरकार में मंत्री भी रहे। उन्होंने देवेन्द्र प्रसाद यादव ने तो 2004 के लोकसभा चुनाव में कमाल कर दिया उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री स्व डा जगन्नाथ मिश्र को पराजित कर देश भर में सुर्खियां बटोर ली। लेकिन 2009 के बाद वे चुनाव तो लड़ते रहे लेकिन सदन नहीं पहुंच सके। फिर मंगनी लाल मंडल वीरेंद्र चौधरी रामप्रीत मंडल सभी अति पिछड़ा समाज के नेता यहां से सांसद बनते आ रहे हैं। इस बार परिस्थिति बदल गई है जदयू अब इंडिया गठबंधन का हिस्सा है। भाजपा यहां अकेले पड़ गई है भाजपा के पास यहां कोई बड़ा चेहरा भी नहीं है।
इंडिया गठबंधन के इस अबेध किला को भेदने के लिए भाजपा मोहिनी चाल चल रही है और हर हाल में झंझारपुर की सीट को जीत कर इसे अपने झोली में डालना चाहती है। भाजपा इसकी तैयारी शुरू कर दी है। अमित शाह झंझारपुर आकर हुंकार भर चुके हैं कार्यकताओं में जोश भर कर चले गये हैं।
राजद जदयू में सीटों का बंटवारा अभी नहीं हुआ है लेकिन यह सीट जदयू कोटे में जाना तय माना जा रहा है। राजद के देवेन्द्र प्रसाद यादव झंझारपुर लोकसभा से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं तो जदयू के वर्तमान सांसद रामप्रीत मंडल के साथ मंगनी लाल मंडल मंत्री शीला मंडल और एक युवा चेहरा प्रवीण कुमार मंडल के नामों की चर्चा राजनीतिक गलियारों में तैर रहा है।
भाजपा राजद और जदयू दोनों खेमे के बड़े नेताओं पर नजर गरारे बैठी है। यहां के टिकट चाहने वाले इंडिया गठबंधन के कई बड़े नेता भाजपा के सम्पर्क में भी है। होगा क्या यह तो समय बताएगा लेकिन झंझारपुर में भाजपा कोई बड़ा खेला करने वाली है। अगर इंडिया गठबंधन के नेता भाजपा की चाल को समझने की भूल की तो इन्हें भारी नुक़सान हो सकता है।
मतलब साफ है कि झंझारपुर लोकसभा सीट को लेकर लालू नीतीश फीलगुड में न रहें। अब बात करते हैं विधान सभा की तो झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र में कुल 6 विधान सभा है। जिसमें तीन झंझारपुर राजनगर और खजौली बिधान सभा पर भाजपा का कब्जा है तो तीन लौकहा बाबूबरही और फुलपरास में जदयू और राजद के विधायक हैं। जहां तक जातीय समीकरण की बात की जाय तो झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र में सबसे अधिक अति पिछड़ा समाज के वोटर हैं दुसरे स्थान पर यादव तीसरे स्थान पर बाह्मण मतदाता हैं। दलित मुस्लिम की आवादी भी अच्छी खासी है जो परिणाम को उलट पलट कर सकते हैं। आर्थिक रुप से पिछड़ा झंझारपुर लोकसभा क्षेत्र में आज भी 80 प्रतिशत लोग खेती करते हैं। मजदूर यहां से लाखों की संख्या में आज भी महानगर की ओर पलायन कर रहे हैं। रोजगार के लिए यहां न तो कभी किसी ने कभी प्रयास किया और न कोई उधोग धंधा यहां स्थापित है। कोशी कमला भूतही बलान का दंश झंझारपुर के लोग वर्षों से झेलते रहे हैं।
वर्तमान सांसद से भी क्षेत्र के लोग काफी नाराज़ दिखते हैं चुकी पांच साल होने को है लेकिन इस क्षेत्र में कोई अपेक्षित काम नहीं हुआ जिससे सांसद पर लोगों का ग़ुस्सा अधिक है। लेकिन यह भी तय है कि ग़ुस्सा कितना भी हो चुनाव के समय जातीय गोलबंदी हर लकीर को मिटा देती है। पिछले कुछ चुनाव से झंझारपुर में अति पिछड़ा समाज को छोड़ किसी अन्य जाति के लोग चुनाव नहीं जीत पाते हैं। यादव बाह्मण मुस्लिम समुदाय के किसी भी प्रत्याशी को अति पिछड़ा समाज पसंद नहीं करते हैं। अब देखना है झंझारपुर लोकसभा जहां गरीबी बेरोजगारी चरम पर है वहां इस बार इंडिया गठबंधन या भाजपा क्या गुल खिलाती है। फिलहाल चुनाव को लेकर इस क्षेत्र में चर्चाओं का बाजार गर्म है।