जयंती पर संस्मरण
धीरे-धीरे पांच वर्ष बीत गए…अटल जी को इस धरा से गए, लेकिन यादें नहीं मिटती। भारतीय राजनीति में कई दिग्गज नेता हुए, जो जब तक सक्रिय रहे तभी तक आम जनता के दिलो दिमाग में रहे। दूसरी ओर अटल बिहारी वाजपेई एक ऐसे नेता रहे, जो सक्रिय राजनीति से दूर होने के बावजूद भी चर्चा में रहते रहे। आज उनकी पार्टी भारतीय जनता पार्टी केंद्र की सत्ता में प्रचंड बहुमत से है। विपक्ष के साथ सत्ता पक्ष की तकरारें होती ही रहती है, लेकिन यह पहली बार देखा जा रहा है कि सत्ता पक्ष के ही शीर्ष नेता रहे अटल जी का नाम लेकर विपक्ष उनकी ही पार्टी पर गोले छोड़ती रहती है। आखिर भारत रत्न, पूर्व प्रधानमंत्री, कवि-पत्रकार अटल जी सर्व स्वीकार्य क्यों है? राजनीति के एकमात्र अजातशत्रु क्यों है? काजल की कोठरी में भी रहकर बेदाग क्यों हैं? आज की द्वेषपूर्ण राजनीति में अटल जी जैसे व्यक्तित्व की कमी बहुत खल रही। मुझे उनके साथ रहने का सौभाग्य मिला, जो अमिट बनकर मेरी जिंदगी के साथ चिपक कर रह गई है। सचमुच, यादें कभी साथ नहीं छोड़ती। आज अटल जी की जयंती पर उनके साथ जुड़े अपने अहसास को जीवंत करने अवसर है। साथ ही यह जानने का कि आखिर कोई अटल क्यों नहीं होता?
बात वर्ष 1980 की है। जब मई में विधानसभा चुनाव में मुजफ्फरपुर से भाजपा की ओर से पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. रामकृपाल सिन्हा (गोवा की दिवंगत राज्यपाल श्रीमती मृदुला सिन्हा के पति) चुनाव लड़ रहे थे। उस वक्त विरोधी दल के बाहुबली प्रत्याशी के बाहर से बुलाए गए अपराधियों ने बूथ कब्जा करना चाहा। विरोध करने पर मुझे चाकू व गोली मार दी, जो मेरे पैर में लगा, जिससे मैं बुरी तरह घायल हो गया। मुजफ्फरपुर में तीन माह तक इलाज करने के बाद डॉक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए। सूचना पाकर बिहार भाजपा के भीष्म पितामह कैलाशपति मिश्र (गुजरात के पूर्व राज्यपाल) मुझे देखने आए और मेरे घर से ही अटलजी और आडवाणी जी समेत भाजपा के आधे दर्जन शीर्ष नेताओं को फोन कर दिल्ली में मेरा समुचित इलाज कराने का आग्रह किया। फिर मुझे दिल्ली ले जाया गया। मेरे पिताजी अटलजी के पास गए तो उन्होंने एम्स में डॉक्टर चंद्रा को फोन कर मेरा इलाज करने को कहा। जब डॉ. चंद्रा ने मेरा पैर देखा तो कहा- पैर तो काटना ही पड़ेगा, जीवन की भी कोई गारंटी नहीं। तब एम्स के अधीक्षक डॉ. सिन्हा, जो बिहार के ही थे ने कहा कि सफदरगंज अस्पताल में डॉ. विश्वकर्मा को दिखलाइए, उनसे बड़ा ऑर्थोपेडिक का डॉक्टर देश में कोई नहीं। परंतु उनसे दिखाने के लिए लंबी लाइन में लगना पडेगा। वे किसी छोटे-मोटे मंत्री तक की सिफारिश तक नहीं सुनते। कोई धाकड़ मंत्री या सांसद से कहलवाएं। जब ये बात अटलजी को बताई गई तो उन्होंने अपने निजी सचिव शिव कुमार जी को कहा- डॉ. विश्वकर्मा का फोन नंबर पता कर बात कराइएं। डॉ. विश्वकर्मा से फोन पर संपर्क हुआ तो अटलजी के ये शब्द थे- मैं अटलबिहारी वाजपेयी बेमौके वेवक्त आपको तकलीफ दे रहा हूं। मेरा एक बहुत ही खास व्यक्ति बिहार से बुरी तरह जख्मी होकर आया है, मैं चाहता हूं आप उसका इलाज स्वयं करें। इसके बाद अटलजी ने मेरे पिताजी से कहा कि मेरी कार से हर्षवर्द्धन को लेकर चले जाइए। डॉक्टर विश्वकर्मा इंतजार कर रहे हैं। आगे लंबी दास्तां है…और सफदरगंज अस्पताल में डॉ. गोपाल कृष्ण विश्वकर्मा की देखरेख में मेरा इलाज चलने लगा।
…तो इंदिरा जी कहलवा दूं क्या?
एक बार डॉक्टरों की हड़ताल के कारण मेरे पैर की ड्रेसिंग 4 दिनों तक नही हो पाया। पैर सड़ने लगा तब पिताजी ने अटलजी के पास जाकर ये बातें बताई। इसपर उन्होंने तत्काल डॉ. विश्वकर्मा को फोन कर कहा-मेरे मरीज की जान के साथ खिलवाड़ हो रहा, मैं तो महज एक सांसद हूं… कहिए तो प्रधानमंत्री इंदिरा जी से कहलवा दूं। इतना सुनते ही सभी वरीय डॉक्टरों समेत डॉ. विश्वकर्मा भागे-भागे मेरे पास आकर पैर की ड्रेसिंग में जुट गए। डॉक्टर ने मेरे पिताजी से कहा-पहले मुझसे मिलना चाहिए। अटलजी की हमलोग बहुत इज्जत करते हैं। उनकी बात इंदिरा जी भी नहीं टालती। अगर वे उनसे बोल देते तो आफत आ जाती।
मेरे शरीर से दो बोतल रक्त ले सकते हैं
खून नहीं मिलने के कारण मेरा ऑपरेशन रूका हुआ था। जब ये बात अटलजी को पता चली तो तो उन्होंने डॉक्टर को फोन कर कहा- अभी मेरे शरीर से दो बोतल रक्त निकल सकता है, मैं आ जाऊं क्या? इसपर डॉक्टर ने कहाकि आप नहीं आएं, खून का अरेंज कर लिया जाएगा। बाद में उस समय अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय महासचिव रहे सुशील कुमार मोदी ( जो फिलहाल बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और राज्यसभा सदस्य हैं) दिल्ली पहुंचे और परिषद के कार्यकर्ताओं से मेरे लिए खून का इंतजाम करने को कहा। तत्पश्चात परिषद के दो कार्यकर्ताओं ने मुझे अपना भाई बतलाकर खून दिया।
आ जाओ जयपुर में डॉ. सेठी से दिखला दूं
इस तरह करीब चार महीने सफदरगंज अस्पताल में इलाज चलने के बाद बैसाखी के सहारे चलने को मुझे छोड़ दिया गया और हर दो माह बाद आकर नर्व कंडीशन जांच कराने को कहा गया। फिर तो हर दो माह के अंतराल पर मुजफ्फरपुर-दिल्ली आना-जाना होने लगा। जब भी दिल्ली जाता तो अटलजी से जरूर मिलता। एक बार उनकी चिट्ठी आई कि आ जाओ जयपुर में डॉ. सेठी से दिखला दूं। जब मैं दिल्ली उनके आवास 6 रायसीना रोड पहुंचा तो बताया गया कि डॉ. सेठी को हृदयाघात हो गया है। अतः आप मुंबई जाकर एशिया के प्रसिद्ध डॉ. के.टी. ढोलकिया से पैर दिखला लें।
गजब की मेमोरी थी उनकी
अटलजी की मेमोरी का जबाव नहीं था। जब भी उनके पास जाता। दूर से ही बोल उठते-आओ हर्षवर्द्धन, तुम्हारी टांग का क्या हाल है। कहने का मतलब इतना महान व्यक्तित्व होने के बावजूद मेरे जैसे अदना से व्यक्ति का नाम उन्हें याद रहता था। परंतु वहीं स्मरण शक्ति अंतिम समय में दगा दे गई। उनके जिस आवाज का मुरीद कभी पूरा देश था, वह भी गुम हो गई थी।
मुंबई में रहने व डॉक्टर को दिखाने की चिंता मेरी हैं
नवंबर 1982 में जब मुंबई जाने की बात आई तो मैंने कहाकि कुछ समय दे दीजिए। वहां कहां रहूंगा व कैसे डॉक्टर से दिखलाउंगा, इसकी व्यवस्था कर लूं फिर चला जाऊंगा। यह सुनकर अटलजी ने कहा- इसकी चिंता आपको करने की जरूरत नहीं, मैं हूं न और उन्होंने अपने निजी सचिव शिव कुमार जी से कहा कि इनका ट्रेन से रिजवर्शेन कराइएं। साथ ही उन्होंने एक पत्र उस वक्त के मुंबई के मेयर के पति वेदप्रकाश गोयल (वर्तमान केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल के पिता) के नाम लिखकर दी और कहाकि जब कोई इमरजेंसी आ पड़े तो इनसे संपर्क कर लेंगे। जब मैं विस्तरबंद लेकर उनके पास मुंबई जाने के लिए पहुंचा तो अटलजी ने कहा-वहां ठंड नहीं पड़ती, ये सब ले जाने की आवश्यकता नहीं, मेरे बंगले पर छोड़ जाइए।
मुंबई पहुंचते ही दामाद की तरह खातिर
अंतत: धड़कते हुए दिल के साथ मुंबई पहुंचा। ट्रेन के स्टेशन पर लगते ही दर्जनों नेता मेरे बोगी में घुसकर पूछने लगे कि अटलजी ने किन्हें भेजा है। जब मैंने अपना परिचय दिया तो नेताओं ने कहा- उनका संदेश आ गया है कि आपकी रहने की व्यवस्था ऐसी जगह करें जहां लैट्रिन-बाथरूम अटैच हो और खाने-पीने का इंतजाम हो। फिर मुझे ताज होटल के पीछे आमदार निवास में स्थानीय विधायक हशु आडवाणी के सुइट में ठहरा दिया गया। करीब एक सप्ताह के बाद डॉ. ढोलकिया से दिखला दिया गया। वहां घूमने के लिए कार भी मुहैय्या करा दी गई। वहां ऐसे लगा मानो मेरी दामाद की तरह खातिर हो रही है।
कुमार हर्षवर्द्धन
वाह. बेहद दिलचस्प अंदाज़ में अटल जी के अद्भुत व्यक्तित्व के अनछुए पहलुओं से अवगत होने का आपने बेहतरीन अवसर दिया. Frontline 24 को अनेकानेक धन्यवाद. पूरी जानकारी संग्रहणीय है.