मधुबनी ।
वह जमाना गया जब सामान्य डिग्रियां हासिल कर लोग जीवन में सफलता प्राप्त कर लिया करते थे या लोगों को नौकरी मिल जाया करती थी। आज तकनीक का दौर है। इस युग में किसी विशेष कौशल के बिना सफलता तो छोड़िए, जीवन यापन के लिए एक अदद रोजगार हासिल करना भी मुश्किल है। उपरोक्त विचार व्यक्त करते हुए स्पोकन इंग्लिश के क्षेत्र में देश की प्रतिष्ठित संस्थान ब्रिटिश लिंग्वा के प्रबन्ध निदेशक डॉ0 बीरबल झा ने कहा कि अंग्रेजी भी आज हमारे देश में मात्र एक भाषा ही नहीं, बल्कि एक स्किल के रूप में स्थापित हो चुकी है। डॉ0 झा आज “इंग्लिश एज एंप्लॉयबिलिटी स्किल” विषय पर आयोजित परिचर्चा को संबोधित कर रहे थे। राजकीय उच्च विद्यालय, कोइलख के प्रांगण में आयोजित परिचर्चा को संबोधित करते हुए अंग्रेजी के विद्वान डॉक्टर बीरबल झा ने कहा कि हमारे संविधान निर्माताओं ने देश में त्रिभाषा फॉर्मूला को अपनाया है जिसके तहत अंग्रेजी को व्यवसायिक क्षेत्र में विकास के लिए अपरिहार्य माना गया।
इस अवसर पर उपस्थित छात्रों को संबोधित करते हुए बीरबल झा ने कहा कि आपके आसपास कई ऐसे ग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट आदि उच्च डिग्रीधारी बेरोजगार घर बैठे मिल जाएंगे जो अपनी असफलता का ठीकरा अपनी किस्मत और सरकार पर फोड़ रहे होंगे। परंतु आपने शायद ही किसी कारपेंटर, हजाम, इलेक्ट्रीशियन, ब्यूटिशियन, फिटर, बेल्डर, आदि को बेरोजगार घूमते देखा होगा। मैंने लाखों ऐसे अल्प शिक्षित, अल्प डिग्रीधारी युवाओं को अपने 30 वर्षों के शिक्षक जीवन में अंग्रेजी बोलना सिखा कर उनकी बेरोजगारी दूर की है।
बिहार के प्रख्यात सोशल एंटरप्रेन्योर श्री झा ने कहा कि बिहार जैसे उद्योग विहीन राज्य की बेरोजगारी और गरीबी दूर करने का एकमात्र उपाय है युवाओं का कौशल विकास कर, उन्हें हुनरमंद बनाकर स्वरोजगार के लिए प्रेरित किया जाए।
अपनी विद्वता एवं पांडित्य के लिए देश- विदेश में ख्यात कोइलख गांव की धरती को नमन करते हुए जाने – माने लेखक डॉ0 बीरबल झा ने स्पोकन इंग्लिश स्किल के साथ ही सॉफ्ट स्किल, लीडरशिप स्किल, सेल्फ मैनेजमेंट, डिसीजन मेकिंग एबिलिटी, इंटर पर्सनल स्किल, इंटरव्यू स्किल की चर्चा करते हुए कहा कि आज के दौड़ में अंग्रेजी बोलना सीखकर ही कोई भी व्यक्ति आसानी से उपरोक्त स्किल विकसित कर अपनी बेरोजगारी दूर कर सकता है। कला के विभिन्न विधाओं, खेल आदि की भी चर्चा करते हुए बीरबल झा ने कहा कि पेरिस ओलंपिक में 140 करोड़ आबादी वाले हमारे देश भारत का प्रदर्शन काफी शर्मनाक है। हमने भी यदि चीन, अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी, आस्ट्रेलिया आदि देशों की तरह खेल को एक स्किल समझ इसे अपनाया होता तो हमारे यहां भी खेल व्यक्तिगत और राष्ट्रीय दृष्टि से भी आय और समृद्धि का साधन होता।
परिचर्चा में उपस्थित स्कूल के प्राचार्य डॉ0 राम मनोहर झा ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कहा कि यह हमारे समाज का दुर्भाग्य है कि हम स्किल डेवलपमेंट के प्रति जागरूक नहीं हैं।
इस अवसर पर स्कूल के सैकड़ों छात्र और शिक्षक मौजूद रहे और विभिन्न प्रश्नों के माध्यम से अपनी जिज्ञाशा को वक्ताओं के समक्ष पेश किया।